
आज इस पोस्ट में आपकोSidi Saiyad Ni Jali History in Hindiबताऊंगा जो गुजरात राज्य केअहमदाबादमें स्थित है|
सिदी सईद की मस्जिद को1573में बनाया गया था| यह अहमदाबाद में मुघलकाल में बनी सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक है|
इस मस्जिद का नाम इसे बनानेवाले पर रखा गया था| सिदी सईद यमन से आये थे और उन्होंने सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद और सुल्तान मुजफ्फर शाह के दरबार में काम किया था|
इसके पश्चिम दिवार की खिडकियों पर बनी जालियां अपनी खूबसूरती की वजह से पूरी दुनिया में मशहूर है| इस जाली की ऊंचाई7फूट और लम्बाई10 फूट है|
Sidi Saiyad Ni Jali in Hindi
इसे अहमदाबाद की प्रख्यात इमारतों में से एक माना जाता है| अहमदाबाद में आनेवाले प्रवासी सिदी सईद नि जाली देखने जरूर जाते हैं|
आज यह जाली अहमदाबाद में नेहरु ब्रिज के पास लाल दरवाजा विस्तार में स्थित है|
एक दुसरें से लिपटी हुई शाखाओंवाली पेड़ की जाली पत्थर को कोतर के तैयार की गयी है| इस तरह की नक्काशी कारीगरी पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है|
गुजरात के इतिहासकार रिजवान कादरी नेBBCहिंदी से बातचीत के दौरान बताया की अफ्रीका से भारत आये लोगों को सिदी कहा जाता है| यह लोग शुरुआत में गुलाम बनकर आये थे लेकिन धीरे धीरे ताकतवर होते गए|
सिदी सईद मस्जिद की हिस्ट्री जानने पर ये मालूम पड़ता है की1583में सिदी का इन्तेकाल हो गया जिसकी वजह से इस मस्जिद का निर्माण अधूरा रह गया और आज तक यह मस्जिद उसी हालत में है यानी आज भी इसका निर्माण अधूरा ही है|

Sidi Saiyad Ni Jali History in Hindi
सिदी सईद के इन्तेकाल के बाद लोगों में यह बात फ़ैल गयी की उनके शव को इसी मस्जिद में ही दफना दिया गया है लेकिन आज भी यहाँ किसी भी तरह का मकबरा देखने को नहीं मिलता है|
इस मस्जिद में कोई मीनार भी नहीं है और नहीं इसमें कोई खास कारीगरी की गयी है| यह मस्जिद सिर्फ अपनी अद्भुत नक्काशी जालियों की वजह से इस दुनिया में मशहूर है|
जिस तरह की बारीकी से इन जालियों पर काम किया गया है और जो नक्काशी की गयी है वो पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है|
यह जाली पुरे विश्व में विख्यात है इसका पता तब चला जब रूस के आखरी क्राउन प्रिंस और ब्रिटन की महारानी एलिजाबेथ ये सभी सिदी सईद मस्जिद की जाली के बहोत दीवाने हैं|
सिदी सईद नि जाली अहमदाबाद की पहेचन है औरIIM AHMEDABADके प्रतिक में भी यह जाली नजर आती है|
मराठा शासन में इस जाली को अस्तबल के रूप में इस्तेमाल किया गया था लेकिन अंग्रेजों के दौर में लार्ड कर्जन ने नया कानून लाने के बाद इसे फिरसे पहेले जैसा बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी|
इन जालियों की खास बात यह है की यह एक पत्थर नहीं है इन्हें छोटे छोटे टुकड़ों में जोड़कर बनाया गया है| लेकिन इसे ध्यान से देखने पर भी ऐसा नहीं लगता की इसे छोटे छोटे टुकड़ों से बनाया गया है बल्कि यह एक पत्थर पर बनाया गया है ऐसा लगता है|