
भारत की आजादी का जब भी जिक्र होता है तोझाँसी के किलेको अवश्य याद कियाजाता है|
उत्तरप्रदेश के झाँसी जिले में शहर के बिचमे भंगारा पहाड़ी पर बने इस किलेको1613में ओरछा के बुंदेल राजा वीर सिंह जोदेव ने बनवाया था|
झाँसी एक समय शसक्त और मजबूत राज्य था और झाँसी को उस समय बलवंत नगर के नामसे जाना जाता था|
उस समय बलवंत नगर में रहेनेवाले किसान अनाज,दूध,दही और लकड़ी बेचकर अपना गुजारा करते थे|
इसी समय भारत में अंग्रेजों का जुल्मों सितम बढ़ने लगा था|
25साल तक यहाँ बुंदेल राजाओने राज किया था उसके बाद मुग़लों,मराठा फिर अंग्रेजों नेराज किया था|
15एकर में फैले इस किले में22बुर्ज है और दो तरफ खाईहै, इसमें10बड़े दरवाजें है और मराठा वास्तुकला से बने शिव मंदिर और गणेश मंदिर हैं|
मजबूत किलेबंधी के लिए बनाई गई ऊँची कड़ी दीवारों पर सैनिकों की पहेरेदारीके लिए कुछ खास जगहें बनायीं गयी थी|

झाँसी के किले की जानकारी
किले में बहार से आने-जाने वाले लोगों पर निगरानी रखने के लिए दीवारों परखास तरीके से चुनाई की गयी थी|
22विशालकाय मजबूत दीवारों पर कुछ दुरी पर कड़क निगरानी रखीजाती थी| जहाँ से पहेरेदार सभी को देख सकते थे|
अंग्रेजों के शासन में किले के ऊपर तोप को रखने के लिए दीवारों को अच्छे सेकाटा गया था|
इस किले में निशानेबाज और तीरंदाजों के लिए अगल अलग खिड़कियाँ भी बनवाई गयीथी|
बड़ी ग्रेनाईट दीवारों पर घुड़सवारों और तोपों की टुकडियां चारों तरफ सेझाँसी के किले और झाँसी के शहर पर निगरानी रखती थीं|
मुख्य किले के अन्दर पंच महल,कड़क बिजली तोप, शिव मंदिर, गणेश मंदिर,आदि मुख्य जगहें हैं|
झाँसी के किलेमें प्रवेश करते ही गंगाधर राव के समय की एक कड़क बिजली तोपदिखाई देती है| इसका नाम कड़क बिजली तोप इसलिए रखा गया था क्यूंकि जब यह चलती थी तोइसमें से बिजली कड़कने की आवाज़ आती थी|
1842में महाराजा गंगाधर राव का विवाह मणिकर्णिका से हुआजिन्हें विवाह के बादझाँसी की रानी लक्ष्मीबाईके नाम से जाना जाता था|
1851में उन्हें एक पुत्र हुआ जिसका नाम दामोदर राव रखा गयाथा लेकिन चार महीनों में ही उसकी मृत्यु हो गयी थी जिससे राजाको गहरा झटका लगा थाऔर उनकी हालत ख़राब रहेने लगी थी|

Jhansi Fort History in Hindi
सलाहकारों के कहने पर राजाने अपने छोटे भाई के बेटे को गोद लेकर ब्रिटिशअधिकारीयों के सामने उसे झाँसी का अगला उत्तराधिकारी घोषित कर दिया|
1853में राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद अंग्रेजों को लालचआया और झाँसी को हथियाने के लिए शाजिस रची गयी|
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के जनरल डेल हौजी नेDoctrine of Lapseलागु करकेझाँसी के सिंहासन पर दामोदर राव के दावे को ख़ारिज कर दिया और किले को उसकेउत्तराधिकार से अलग कर दिया|
इस प्रस्ताव को लाने पर भरी सभा में रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से कहामें अपनी झाँसी कभी नहीं दूंगी|
मार्च1854में रानी लक्ष्मीबाई को60हजार रुपे सालानावार्षिक पेंशन शर्त पर महल और किले को छोड़ने के लिए कहा गया| लेकिन झाँसी की रानीलक्ष्मीबाई ने इस शर्त पर इंकार कर दिया|
अंग्रेजी हुकूमत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ1857में विद्रोहहो गया जिसमे लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सेना का नेतृत्व किया|
इतिहासकार बताते हैं की अंग्रेजों ने झाँसी के किले पर8दिनों तकगोले बरसाए थे लेकिन फिर भी वो ना तो किला जीत सके और नहीं किले में घुस सके|
अंगेजी सेनापति ह्यूरोज जान गया था की सेना के बल पर किले पर कब्ज़ा नहींकिया जा सकता इसलिए उसने कूटनीति का सहारा लिया और झाँसी के विस्वसनीय सरदारदुल्हा सिंह को अपने साथ मिला लिया जिसने छत से झाँसी के किला का दक्षिणी दरवाजाखोल दिया|
8अप्रैल1858को लगभग20हजार अंग्रेजी सिपाहीकिले में घुस गए और लूटपाट और मारकाट शुरू कर दिया|
तब एक ऐसा समय भी आया जब रानी अंग्रेजों से घिर चुकी थी लेकिन कुछ विस्वासपात्र लोगों के साथ रानी कल्पी के लिए आगे बढ़ गयी| इस दौरान उनके पैर में गोली भीलगी थी फिर भी वह यहाँ नहीं रुकी थी|
कहा जाता है की किले में आज भी वो जगह है जहाँ से रानी अपने घोड़े के साथ कुदीथीं|
स्वतंत्रता की इस लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई शहीद तो हुई लेकिन आज भी झाँसीका यह किला उनकी बहादुरी की याद दिलाता है, आज भी यह किला झाँसी की रानीलक्ष्मीबाई के नाम से पहेचाना जाता है|
आप लोगों कोझाँसी के किली की हिस्ट्रीकैसी लगी Comment करके जरूर बताएं |