ISRO Full Form in Hindi | ISRO की जानकारी
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ISRO Full Form |
ISRO Full Form - INDIAN SPACE RESEARCH ORGANIZATION
रखा गया है|
आज हम आपको एक
ऐसी स्पेस एजेंसी के बारे में बताएँगे जिसकी एक एक कामयाबी के आगे दुनिया सर
झुकाती है, जिसका हरेक
कदम टीवी चैनल और अख़बारों की हेडलाइन बन जाता है, जिसके कारनामों के देखकर दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस
एजेंसी NASA भी इसका लोहा मानती है इस स्पेस एजेंसी का नाम ISRO है|
जो लोग इसरो को एक छोटी मोटी संस्था समजते हैं वो लोग इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें क्यूंकि इस आर्टिकल में ISRO की पूरी जानकारी मिलेगी जो आप नहीं जानते और इस जानकारी को जानने के बाद आपको पता चल जाएगा की ISRO क्या है|
इसरो इंडियन गवर्नमेंट का एक ऐसा डिपार्टमेंट है जो आजतक लोस में नहीं गया
है| इस एजेंसी ने हंमेश इंडियन गवर्नमेंट को प्रॉफिट ही दिया है|
पिछले 40 सालों में इसरो पर भारतीय गवर्नमेंट ने जितना पैसा खर्चा किया है वो NASA के एक साल के बजट का आधा है| इससे ये बात पता चलती है की बड़ी सफलता पाने के लिए सिर्फ पैसे ही नहीं दिमाग भी लगता है|
ISRO का मुख्यालय
बैंगलोर में है| भारत में इसरो के 13 केंद्र हैं|
इसरो ने अभी तक 33 अलग अलग देशों के सेटेलाइट लोंच किये हैं|
इसरो के बजट में सरकार के कुल खर्च का 0.34% हिस्सा जाता और GDP
का 0.08
% जाता हिस्सा जाता है|
नासा की इन्टरनेट स्पीड 91 GB/PS है लेकिन इसरो की 2 GB/PS है|
इसरो के एम्प्लोयी ने बताया की इसरो में जिस तरह से सभी लेवल के एम्लोयी के
बीच रेस्पेक्ट है ऐसा किसी भी देश में नहीं है|
इसरो के हेडक्वार्टर में सभी के लिए एक ही कैंटीन है फिर चाहे वो टेकनिशियन
हो, साइंटिस्ट हो या फिर इसरो के डायरेक्टर ही क्यों न हो|
पाकिस्तान की भी एक स्पेस एजेंसी है जिसका नाम सेपेरको है जो 1961 में बनी थी
और इसरो 1969 में बनी है फिर भी इसरो ने आजतक 86 से ज्यदा सेटेलाइट लोंच किये हैं और सुपेरको
ने 2 वो भी दुसरे देशों की मदद से|
इसरो का मंगल मिशन दुनिया का सबसे सस्ता मंगल मिशन है जिसमे 450 करोड रूपये
लगे थे मतलब 12 रूपये/ किमी जो एक ऑटोरिक्षा के किराये के बराबर है|
ISRO की जानकारी और मिशन
भारत ने 1962 में निर्णय लिया था की अब उनको भी स्पेस के बारे में
जानना है तभी इंडियन गवर्नमेंट ने इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च बनाया
लेकिन काम ज्यादा होने की वजह से स्पेस एजेंसी को अलग करके नया डिपार्टमेंट बनाया
जिसे आज हम ISRO के नाम से जानते हैं|
ISRO की स्थापना विक्रम साराभाई ने 1969 को
इंडिपेंडेंस डे के दिन की थी| इसीलिए विक्रम साराभाई को ISRO का जनक भी
कहा जाता है|
इसरो ने अपना पहेला सेटेलाइट 19 अप्रैल 1975 को लोंच किया था| इस
सेटेलाइट का नाम आर्यभट्ट था|
उस समय भारत के पास लोंच व्हीकल नहीं था तब रूस ने भारत की मदद की थी और
भारत की पहेली सेटेलाइट लोंच हुई थी|
1979 तक इसरो अपने स्वदेशी सेटेलाइट बनाने में कामयाबी हांसिल
कर चूका था| लेकिन अभी भी इसरो को अपने सेटेलाइट लोंच करने के लिए दुसरे देशों की
जरुरत पड़ती थी|
भारत ने 18 जुलाई 1980 को अपना पहेला स्वदेशी उपग्रह मतलब सेटे लाइट
SLV 3 लोंच किया
था और इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर ए पि जे अब्दुल कलाम थे|
इस सेटेलाइट का निर्माण और प्रशिक्षण पूरी तरह से भारत में ही हुआ था| इसके
बाद भारत छठा ऐसा देश बन गया था जो खुद सेटेलाइट लोंच कर सकता था|
आपको जानकर गौरव होगा की जापान, रूस, चीन, अमेरिका, फ्रांस के साथ भारत भी
उन देशों में शामिल है जों अपने देश में सेटेलाइट बनाने के साथ उसे खुद लोंच भी
करते हैं|
1990 में पोलर सेटेलाइट लोंच व्हीकल (PSLV) तैयार किया
गया था|
2001 में भारत ने पहेला GSLV सेटेलाइट लोंच
किया था|
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ISRO |
ISRO Full Form in Hindi-इसरो की जानकारी
आज भारत के पास दो मुख्य रोकेट हैं PSLV और GSLV| PSLV का इस्तेमाल छोटे और
हलके सेटेलाइट को लोंच करने के लिया जाता ह| GSLV का इस्तेमाल भारी और बड़े
सेटेलाइट को लोंच करने के लिए किया जाता है|
ISRO का बजट GDP
का 1%
भी नहीं है
लेकिन फिर भी इसरो भारत सरकार को बहोत अच्छा नफा कमाके देता|
इसरो ने 2008 में चंद्रयान मिशन किया था| चंद्रयान 1 मिशन में
मानवरहित यान को चाँद पर रिसर्च करने के लिए भेजा गया था|
चंद्रयान 1, 22
अक्टूबर 2008 को सतीशधवन
अंतरिक्ष केंद्र से लोंच किया गया था और चाँद तक पहोंचने में इसे पांच दिन लगे थे| चाँद की कक्षा में
स्थापित होने के लिए इसे 15 दिन का समय लगा था|
वैज्ञानिकों का मानना था की चंद्रयान 1 दो साल तक काम करेगा
लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण 10 महीने बाद अगस्त 2009 को इससे संपर्क टूट गया|
लेकिन अच्छी बात यह थी की इन दस महीनों में ही चंद्रयान 1 ने अपना 95%
काम पूरा कर
लिया था|
इसी चंद्रयान 1 की वजह से भारत चाँद पर पानी खोजनेवाला पहेला देश बन गया
है|
चंद्रयान 1 ने चाँद पर मौजूद चट्टानों पर पानी होने के पुख्ता सबूत
भेजे थे जिसे दुनिया की बाकी अंतरिक्ष एजेंसीयों ने भी माना था|
चंद्रयान मिशन की कॉस्ट 386 करोड़ रूपये थी जो सभी देशों के चाँद के मिशन में सबसे कम
थी|
चंद्रयान 1 के पांच साल बाद इसरो ने मंगल अभियान शुरू किया था| इस
मिशन में इसरो ने 5 नवम्बर
2013 को मंगल ग्रह
की तरफ एक सेटेलाइट भेजा था जो 298 दिन की यात्रा के बाद 24 सितम्बर 2014 को मंगल
ग्रह की कक्षा में सफलता पूर्वक पहोंचकर स्थापित हो गया|
इस यान के मंगल ग्रह की कक्षा में पहोंचने के साथ ही भारत अपने पहेले ही
प्रयास में मंगल पर पहोंचने वाला पहेला देश बन गया| इससे पहले कोई भी देश अपने
पहेले प्रयास में मंगल ग्रह पर नहीं पहोंचा है|
ISRO Full Form in Hindi
भारत मंगल ग्रह पर पहोंचने वाला एशिया का पहेला देश भी है क्यूंकि इससे
पहेले चीन और जापान अपने मंगल मिशन में असफल हुए थे|
नासा पांच बार, यूरोपियन यूनियन आठ बार, चीन, जापान और रूस भी अपने पहले प्रयास में मंगल ग्रह
पर पहोंचने में असफल हुए थे|
2016 में PSLV के माध्यम से भारत ने अपना पहेला GPS NAVIGATION सेटेलाइट
अंतरिक्ष में भेजा था और अमेरिका की तरह अपना GPS सिस्टम NavIC बनाने में
कामयाब हुआ|
इसरो ने 15 फरवरी 2017 को PSLV C37 के द्वारा 104 सेटेलाइट को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया और एक बार में सबसे ज्यादा सेटेलाइट लोंच करने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया|
ISRO All Mission in Hindi-इसरो के अंतरिक्ष अभियान
इसरो के हिसाब से यह मिशन 2022 तक पूर्ण हो जाएगा| जो
यह मिशन सफल हो गया तो भारत चौथा देश होगा जो अपना खुदका मानवयान अंतरिक्ष में
भेजेगा|
आदित्य मिशन
यह एक ऐसा मिशन है जिसमे आदित्य सेटेलाइट सूर्य के सबसे भरी भाग का अध्ययन
करेगी क्यूंकि सूर्य के सबसे भरी भाग का अध्ययन केवल सूर्य ग्रहण के समय ही किया
जा सकता ह|
मंगलयान 2
मंगलयान मिशन की कामयाबी के बाद इसरो ने फेसला लिया है की वो मंगल यान 2
को 2021
या 2022 में लोंच करेंगे|
शुक्रयान 1
मंगलयान की कामयाबी के बाद इसरो वीनस और जुपिटर पर भी अपने यान भेजने की
तैयारी कर रहा है| यह मिशन 2022 या 2023
में लोंच हो सकता है|
यह मिशन 33
महीनो का
होगा| इसमें एक ही यान दो अलग अलग ग्रह यानि वीनस और जुपिटर पर जाएंगे| जो ऐसा हो
गया तो इसमें भी भारत पहेला देश बन जाएगा जो एक यान से दो ग्रह पर प्रशिक्षण
करेगा|
RLVTD
यह व्हीकल स्पेस शटल को स्पेस में छोड़कर एक एयरक्राफ्ट की तरह वापस आ जाएगा
और इसका दुबारा इस्तेमाल मिया जा सकेगा|
एक समय वो था जब सेटेलाइट को लोंच करने साइकिल पर जाना पड़ता था और एक आज है
की इसरो के साथ काम करने के लिए सभी स्पेस एजेंसीयां रिक्वेस्ट करती हैं|